उत्तराखंड में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल का राज्य आंदोलनकारी सम्मान पहचान पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसे लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या वे वास्तव में उत्तराखंड आंदोलनकारी थे?
क्या है पूरा मामला ?
सोशल मीडिया पर Shambhu Paswan नामक एक यूजर ने पोस्ट किया कि उत्तराखंड सिर्फ पहाड़ियों की ही देन नहीं, बल्कि विभिन्न मूल के आंदोलनकारियों का भी योगदान रहा है। इस पोस्ट के साथ प्रेम चंद्र अग्रवाल का राज्य आंदोलनकारी पहचान पत्र साझा किया गया है।
विवाद क्यों?
1️ विधानसभा सत्र के दौरान प्रेम चंद्र अग्रवाल द्वारा ‘साले पहाड़ियों’ कहने का आरोप – इस बयान को लेकर उत्तराखंड के पहाड़ी समाज में भारी आक्रोश है।
2 उत्तराखंड आंदोलन में उनकी भूमिका पर सवाल – क्या वे वास्तव में आंदोलनकारी थे, या फिर यह राजनीतिक लाभ के लिए मिला प्रमाण पत्र है?
3 कई लोगो का कहना है कि वास्तविक आंदोलनकारियों को आज भी हक नहीं मिला – सत्ता में बैठे लोग इस पहचान पत्र का लाभ उठा रहे हैं, जबकि असली आंदोलनकारी अब भी संघर्ष कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे हैं कि आंदोलन में हर समुदाय का योगदान था।
कई लोग इसे सत्ता पक्ष की चाल बताते हुए कह रहे हैं कि राजनीतिक पहुंच वाले लोगों को ही लाभ मिलता है।
‘साले पहाड़ी’ वाले विवाद के बाद यह मुद्दा और तूल पकड़ रहा है, लोग इसे पहाड़ी अस्मिता का अपमान बता रहे हैं।
सरकार और प्रेम चंद्र अग्रवाल की प्रतिक्रिया का इंतजार
अब देखना होगा कि सरकार और खुद प्रेम चंद्र अग्रवाल इस पर क्या सफाई देते हैं। क्या यह प्रमाण पत्र सही प्रक्रिया से जारी हुआ, या यह महज एक राजनीतिक स्टंट है?
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