आर्थिक तंगी के कारण किसान नेता कार्तिक उपाध्याय ने दिया किसान मंच से इस्तीफा,आंदोलनों से भी अलग होने का ऐलान

हल्द्वानी: किसानों, मजदूरों और बेरोजगारों की लड़ाई लड़ने वाले युवा आंदोलनकारी किसानपुत्र कार्तिक उपाध्याय ने किसान मंच उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने सभी ongoing आंदोलनों से खुद को अलग करने का निर्णय लिया है।

 

हल्द्वानी रिंग रोड परियोजना विरोध आंदोलन:

कार्तिक उपाध्याय ने हल्द्वानी में प्रस्तावित रिंग रोड परियोजना का विरोध करते हुए ‘किसान मकान बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया था। उनका कहना था कि यह परियोजना किसानों की भूमि और आजीविका को प्रभावित करेगी। प्रशासन ने विरोध के बाद परियोजना के लिए नए सिरे से सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया, जिसमें सड़क की चौड़ाई 45 मीटर से घटाकर 30 मीटर करने पर विचार किया गया हैं।

एचपी मजदूर संघ के आंदोलन में भूमिका :

हल्द्वानी में एचपी मजदूर संघ के आंदोलन में भी कार्तिक उपाध्याय ने अहम भूमिका निभाई। कोरोना महामारी के बाद 187 स्थायी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया था। इस आंदोलन में कार्तिक ने 70 विधायकों को लाइव कॉल कर मजदूरों की स्थिति बताई, जिसे सोशल मीडिया पर 1.5 मिलियन (15 लाख) से अधिक लोगों ने देखा।

 

इसके बाद आंदोलन को लेकर कर्नाटक और राजस्थान के बेरोजगार युवाओं ने कार्तिक उपाध्याय को आंदोलन का नेतृत्व सौंपने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने उत्तराखंड के प्रति अपने प्रेम के कारण इसे ठुकरा दिया। अंततः निकाले गए 187 मजदूरों और कंपनी के बीच समझौता भी हो गया था।

 

इस आंदोलन के दौरान ‘लाचार विधायकों का सपाट ग्रहण समारोह’ भी आयोजित किया गया, जिसे लोगों ने सराहा,क्योंकि मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री के सामने हाथ जोड़े झुके युवा की फोटो गूगल पर नहीं थी और उन दिनों AI भी प्रचलन में नहीं था तो स्वयं आंदोलनकारी ने अपनी फोटो आंदोलन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पोस्टर में चिपका दी इस दौरान पहले तो लोग उनकी इस हरकत पर खूब हंसे लेकिन जब कार्यक्रम देर रात्रि कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी में सफल हुआ तो सभी ने कार्तिक की इस हरकत की सराहना की।

 

 

नर्सिंग भर्ती आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका:

बुद्ध पार्क, हल्द्वानी तिकोनिया में कार्तिक उपाध्याय ने लगभग 150 दिनों तक दिन-रात नर्सिंग अभ्यर्थियों के समर्थन में धरना दिया। इस आंदोलन के बाद 2600 से अधिक युवा सरकारी नौकरी में चयनित हो चुके हैं।

 

भूख हड़ताल भी की, अस्पताल से भागकर फिर बैठे धरने पर

इस दौरान कार्तिक उपाध्याय ने भूख हड़ताल भी की। पांचवें दिन उनकी तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती करा दिया। लेकिन युवा आंदोलनकारी कार्तिक उपाध्याय झुके नहीं और देर रात अस्पताल से भागकर फिर से धरना स्थल पर पहुंच गए और भूख हड़ताल जारी रखी। अंततः सरकार को झुकना पड़ा और नर्सिंग भर्ती प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी।

 

आंदोलन के लिए मर मिटने वाले युवा आंदोलनकारी

जब कार्तिक उपाध्याय ने देखा कि नर्सिंग आंदोलन कमजोर पड़ रहा है, तो उन्होंने अपनी बाइक बेच दी ताकि आंदोलन जारी रह सके। आज उनके पास कोई वाहन तक नहीं है, लेकिन परिवार हर तरह से उनका और उनके आंदोलनकारियों का सहयोग करता है।

 

 

उत्तराखंड बेरोजगार संघ के आंदोलनों में भूमिका:

कार्तिक उपाध्याय उत्तराखंड के हर बड़े बेरोजगार आंदोलन में सक्रिय रहे हैं। चाहे बात पेपर लीक मामले की हो, न्यायपूर्ण भर्ती प्रक्रिया की मांग हो या योग्य बेरोजगारों को नौकरी दिलाने का संघर्ष, वह हमेशा युवाओं के साथ खड़े रहे।

 

मूल निवास और भू-कानून के लिए संघर्ष:

कार्तिक उपाध्याय उत्तराखंड में मूल निवास और भू-कानून के पक्ष में चलाए गए हर बड़े आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने पहाड़ की अस्मिता बचाने के लिए कई जनसभाओं, धरनों और वार्ताओं में भाग लिया।

 

सामाजिक सेवा:

कार्तिक उपाध्याय सिर्फ आंदोलनों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि पहाड़ के मरीजों को इलाज दिलाने के लिए भी दिन-रात मेहनत करते रहें हैं। वे गरीब, असहाय और बीमार लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, कोरोना काल में उन्होंने घर घर दवा छोड़ी कोरोना मरीजों को अस्पताल पहुंचाया,और लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार भी किया।

 

 

10 वर्षों का सामाजिक जीवन, 1.12 लाख का कर्ज़:

कार्तिक उपाध्याय ने पिछले 10 वर्षों से बिना किसी स्वार्थ के समाज सेवा की, लेकिन इस दौरान उन्होंने कुछ भी नहीं कमाया। आज उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि उन पर ₹1,12,000 का कर्ज़ चढ़ चुका है।

 

 

प्रलोभन और अवैध आर्थिक प्रस्तावों को ठुकराया:

कार्तिक उपाध्याय ने खुलासा किया कि इस दौरान उन्हें कई राजनीतिक दलों से प्रलोभन मिले, साथ ही आर्थिक मजबूती के लिए कई अवैध रास्ते भी सुझाए गए, लेकिन उन्होंने सभी को सख्ती से नकार दिया। उन्होंने कहा कि “मैंने हमेशा अपने सिद्धांतों के साथ समझौता करने से इनकार किया है और आगे भी अपनी ईमानदारी बनाए रखूंगा।”

 

 

पितृ शोक और लेखन की ओर बढ़ता रुझान:

इन संघर्षों के बीच कार्तिक उपाध्याय अपने पितृ शोक से भी गुजर रहे हैं। उन्होंने इस दौरान कुछ अधूरी किताबें और कई कविताएं लिखी हैं, जिन्हें अब वे पूरा कर प्रकाशित करना चाहते हैं। अब वह अपने लेखन कार्य को पूरा करने के लिए समय निकालेंगे,उनकी पहली किताब *पक्षाघात की गहरी चोट से,मां जब मौन हुई होगी* जोकि उनके एक पारिवारिक सच्ची घटना पर लिखित होगी।

 

 

आर्थिक रूप से मजबूत भी हैं, लेकिन विचारों के प्रति अडिग:

हालांकि, कार्तिक उपाध्याय के पास पुश्तैनी ज़मीन है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत कही जा सकती है, लेकिन उन्होंने हमेशा विचारों को सबसे बड़ी ताकत माना है। वे अपने संघर्षों और आंदोलनकारी जीवन को धन-संपत्ति से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।

 

 

आगे का रास्ता – राजस्थान में कुछ समय बिताएंगे:

पहाड़पन के सूत्रों के अनुसार, कार्तिक उपाध्याय जल्द कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे और कुछ समय राजस्थान में बिताएंगे। इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि वे आंदोलनों से ब्रेक लेकर भविष्य की रणनीति पर विचार कर सकते हैं,और वह क्या होगी यह कह पाना संभव नहीं।

 

 

आंदोलनों को बड़ा झटका:

कार्तिक उपाध्याय के इस निर्णय से उत्तराखंड के किसान आंदोलन और बेरोजगारों के संघर्ष को बड़ा झटका लगा है। उनके बिना इन आंदोलनों की दिशा पर अब सवाल उठ रहे हैं,क्योंकि बीते कुछ समय से वह आंदोलनकारी नेताओं पर सवाल भी उठा रहें थे।

 

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