नई दिल्ली/उत्तराखंड।
1962 के भारत-चीन युद्ध में मातृभूमि की रक्षा करते हुए अमर बलिदान देने वाले महावीर चक्र से अलंकृत राइफलमैन जसवंत सिंह रावत जी की जयंती पर आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। उनके अदम्य साहस और रणकौशल को भारतीय सेना और आम जनमानस आज भी उतनी ही श्रद्धा से याद करता है।
अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में जसवंत सिंह रावत ने अपनी वीरता से चीन की विशाल सेना को कई दिनों तक रोके रखा। अकेले मोर्चा संभालते हुए उन्होंने जिस जांबाजी और मातृभूमि के प्रति समर्पण का परिचय दिया, वह भारतीय सैन्य इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उनकी शहादत के सम्मान में भारतीय सेना आज भी उन्हें जीवित मानकर जसवंतगढ़ स्मारक पर उनके लिए भोजन परोसती है।
जसवंत सिंह रावत के जीवन से जुड़ी यह गाथा केवल एक सैनिक की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है। उनके बलिदान ने यह साबित किया कि देश की रक्षा में एक सैनिक का जज्बा दुश्मन की बड़ी से बड़ी ताकत को भी चुनौती दे सकता है।
जयंती पर देशभर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं। उत्तराखंड से लेकर अरुणाचल तक और सेना की चौकियों से लेकर आम जनमानस तक हर कोई उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहा है।
आज जब देश उनकी जयंती मना रहा है, तो यह संदेश भी दोहरा रहा है कि राइफलमैन जसवंत सिंह रावत का जीवन हर भारतीय के लिए राष्ट्रभक्ति, कर्तव्य और बलिदान का अमर प्रतीक है।
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