उत्तराखंड में UCC लागू करना कुमाऊंनी गढ़वालियों को अल्पकंसख्क बनाने की सोची समझी रणनीति,विवाद शुरू,5वीं अनुसूची में शामिल करने की उठी मांग

देहरादून, 31 जनवरी 2025: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की सरकार की योजना पर विवाद बढ़ता जा रहा है। उत्तराखंड एकता मंच ने आज एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया कि यह कदम राज्य की मूल संस्कृति को कमजोर करने और गढ़वाली-कुमाऊनी समुदाय को अल्पसंख्यक बनाने की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। मंच ने इसके समाधान के रूप में उत्तराखंड को 5वीं अनुसूची के तहत जनजातीय दर्जा देने की मांग उठाई है।

 

UCC से उत्तराखंड पर संभावित प्रभाव

विज्ञप्ति में UCC के संभावित दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कई गंभीर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं:

 

1. जनसांख्यिकीय बदलाव – UCC लागू होने से बाहरी लोगों को उत्तराखंड में बसने का आसान रास्ता मिलेगा, जिससे स्थानीय गढ़वाली-कुमाऊनी समुदाय अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन सकता है।

 

 

2. लिव-इन संबंधों को बढ़ावा – सरकार के प्रस्तावित कानून के अनुसार, यदि कोई बाहरी व्यक्ति उत्तराखंड में लिव-इन संबंध में रहता है, तो उसे मात्र एक वर्ष में स्थायी निवासी का दर्जा मिल सकता है। इससे बाहरी लोगों को वे सभी अधिकार मिल जाएंगे जो सदियों से पहाड़ी निवासियों को ही प्राप्त थे।

 

 

3. शरणार्थियों का पुनर्वास – उत्तराखंड एकता मंच ने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बसाने की योजना पहले से ही बनाई जा रही है, और UCC इस प्रक्रिया को और तेज करेगा।

 

 

 

UCC का विरोध पर्याप्त नहीं, समाधान जरूरी

मंच ने स्पष्ट किया कि केवल UCC का विरोध करने से कुछ नहीं होगा। इसके बजाय, गढ़वाली-कुमाऊनी समुदाय को 5वीं अनुसूची के तहत जनजातीय दर्जा (Tribe Status) दिलाने की दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है।

 

5वीं अनुसूची में शामिल होने के फायदे

उत्तराखंड एकता मंच के अनुसार, यदि गढ़वाली-कुमाऊनी समुदाय को Tribe Status मिलता है, तो यह निम्नलिखित तरीकों से फायदेमंद होगा:

 

1. संस्कृति और पहचान की सुरक्षा – 5वीं अनुसूची के तहत आने से पहाड़ी संस्कृति, परंपराएँ और भाषा को कानूनी संरक्षण मिलेगा।

 

 

2. बाहरी लोगों की बसावट पर रोक – यदि राज्य के मूल निवासियों को जनजातीय दर्जा प्राप्त हो जाता है, तो बाहरी लोग आसानी से जमीन नहीं खरीद पाएंगे और राज्य की मूल संरचना प्रभावित नहीं होगी।

 

 

3. विशेष सरकारी अधिकार और आरक्षण – Tribe Status मिलने से स्थानीय लोगों को सरकारी योजनाओं, शिक्षा और नौकरियों में विशेष आरक्षण प्राप्त होगा, जिससे पहाड़ी समुदाय की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

 

 

4. पर्यावरण और संसाधनों की सुरक्षा – बाहरी हस्तक्षेप पर रोक लगाकर उत्तराखंड के पारंपरिक जीवन और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित किया जा सकेगा।

 

 

 

आगे की रणनीति

उत्तराखंड एकता मंच ने स्पष्ट किया कि अब केवल विरोध करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि ठोस कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने राज्यवासियों से अपील की कि:

 

1. जनजातीय दर्जे की माँग को सशक्त बनाया जाए – उत्तराखंड के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार पर 5वीं अनुसूची में शामिल होने की माँग को मजबूती से रखा जाए।

 

 

2. जनप्रतिनिधियों और नीति-निर्माताओं पर दबाव बनाया जाए – स्थानीय विधायकों, सांसदों और अन्य नेताओं से इस विषय पर समर्थन लेने के लिए दबाव डाला जाए।

 

 

3. सोशल मीडिया और जनसभाओं के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए – UCC के प्रभाव और 5वीं अनुसूची की जरूरत को लेकर व्यापक अभियान चलाया जाए।

 

 

 

निष्कर्ष

उत्तराखंड में UCC लागू करने के निर्णय पर गहराते विवाद के बीच, राज्य की मूल पहचान को बचाने के लिए जनजातीय दर्जे की माँग जोर पकड़ रही है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस माँग पर क्या रुख अपनाती है और क्या उत्तराखंड को 5वीं अनुसूची के तहत विशेष दर्जा मिल सकता है।

उत्तराखंड एकता मंच

 

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